अलीगढ : एक दुपट्टे को सर पर रखने से तबाह हो गई एक साल की मेहनत,

shabddigital
0


 अलीगढ (शब्द डेस्क ): जाती  प्रमाण पत्र के लिए खिंचाए फोटो में छात्रा ने पहना दुपट्टा तो नही दे पाई नीट का एग्जाम


अलीगढ़ में सर पर दुपट्टा रखना एक छात्रा के लिए जी का जंजाल बन गया छात्रा को कुछ और जाति का समझकर उसका जाति प्रमाण पत्र लेखपाल के द्वारा रिजेक्ट कर दिया गया एक बार नहीं बल्कि तीन बार लेखपाल के द्वारा इस जाति प्रमाण पत्र को जब कैंसिल किया तो छत्रा के द्वारा लेखपाल से बात की गई तो लेखपाल के द्वारा छात्रा से उसकी जाति पूछी गई जब छात्रा के द्वारा अपने आप को हिंदू बताया तब कहीं जाकर छात्रा को चौथी बार जाति प्रमाण पत्र अप्लाई करने की बात कहि वही जहाँ एक ओर हिंदू रीति रिवाज में भी सर पर दुपट्टा रखना होता है तो वहीं दूसरी ओर छात्रा के द्वारा रखे गए सर पर दुपट्टे को लेकर लेखपाल के द्वारा लापरवाही बरतते हुए उसके जाति प्रमाण पत्र को ही कैंसिल कर दिया है जिसके बाद आक्रोशित छात्रा के द्वारा लेखपाल के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है


दरअसल पूरा मामला जिला

अलीगढ़ का है जहां एक ओर चिलचिलाती गर्मी से तपती सड़कों पर जैसे ज़िंदगी ठहर सी गई थी। लेकिन मंजूरगढ़ी गांव के एक छोटे से घर की छात्रा हेमा कश्यप की आंखों में उम्मीदों की चमक थी। उसने साल भर दिन-रात एक कर मेहनत की थी। नीट की परीक्षा पास करके डॉक्टर बनने का सपना वो पलकों में सजाए घूमती थी।


हेमा के पिता सुरेंद्र सिंह एक मामूली मजदूर हैं। घर की हालत इतनी अच्छी नहीं थी, लेकिन बेटी की पढ़ाई में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी। हेमा भी जानती थी कि उसके कंधों पर सिर्फ अपने सपनों का नहीं, पूरे परिवार की उम्मीदों का बोझ है।

सब कुछ ठीक चल रहा था, जब उसने नीट की परीक्षा के लिए आवेदन किया। लेकिन एक ज़रूरी दस्तावेज़ — जाति प्रमाण पत्र — उसके सपने और हक के रास्ते में दीवार बन गया।


उसने तहसील कॉल में ऑनलाइन आवेदन किया था, लेकिन जब लेखपाल की जांच की बारी आई, तो वो वजह बनी उसके सपनों के टूटने की।

लेखपाल ने उसका आवेदन देखे, बिना कुछ पूछे ही अस्वीकार कर दिया। कारण? हेमा के सिर पर दुपट्टा था। लेखपाल ने मान लिया कि वो "हिजाब" है और इस आधार पर उसने उसकी जाति पर संदेह जताते हुए प्रमाण पत्र रिजेक्ट कर दिया।हेमा को पहले तो विश्वास ही नहीं हुआ। क्या सिर्फ इसलिए कि उसने सिर पर दुपट्टा लिया था, उसकी पहचान, उसका धर्म, उसकी जाति — सब कुछ बदल गया? क्या एक कपड़े के टुकड़े ने उसकी मेहनत को खारिज कर दिया?

पहली बार जब आवेदन रिजेक्ट हुआ, उसने सोचा — गलती हुई होगी। दोबारा अप्लाई किया। फिर वही नतीजा। तीसरी बार जब जवाब आया, तो वो टूट गई। "आपकी जाति संदिग्ध है। प्रमाण पत्र जारी नहीं किया जा सकता।"


हेमा की आंखों से आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। एक साल की मेहनत, किताबों के पन्नों पर बिताई गई रातें, मां की रसोई में बिना शिकायत के बिताया गया समय — सब बेकार हो गया था।


उसने हार नहीं मानी। वह खुद तहसील कार्यालय पहुंची और तहसीलदार से शिकायत की। तहसीलदार ने जब मामला सुना, तो लेखपाल को फटकार लगाई और जाति प्रमाण पत्र जारी करने के निर्देश दिए। लेकिन हेमा को इससे संतोष नहीं था।

सिर्फ प्रमाण पत्र नहीं चाहिए, मुझे न्याय चाहिए," उसने दृढ़ स्वर में कहा। "उस इंसान ने मेरे सपनों को, मेरी पहचान को, मेरे संघर्ष को झूठा करार दिया — सिर्फ एक दुपट्टे के कारण।"

हेमा ने जिलाधिकारी कार्यालय का रुख किया। वह अकेली नहीं थी, उसके साथ उसका आत्मबल था, उसके सपनों की ताकत थी। उसने डीएम से लेखपाल के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की। जिलाधिकारी संजीव रंजन ने मामले को गंभीरता से लिया और जांच के निर्देश दिए।

यह सिर्फ हेमा की लड़ाई नहीं थी। यह उन हजारों लड़कियों की लड़ाई थी, जो समाज के पूर्वाग्रहों के खिलाफ खड़ी होती हैं। यह उन बेटियों की आवाज़ थी, जो परंपराओं के बोझ के बावजूद शिक्षा और पहचान के लिए जूझती हैं।


हेमा का कहना था — "दुपट्टा मेरी पहचान नहीं है। मेरी मेहनत मेरी पहचान है। मैं क्या पहनती हूं, इससे मेरे अधिकार नहीं बदल जाते।"जैसे-जैसे यह मामला सामने आया, पूरे जिले में चर्चा शुरू हो गई। लोग हैरान थे कि एक सरकारी कर्मचारी इतनी छोटी सी बात को लेकर किसी का भविष्य कैसे बर्बाद कर सकता है। सोशल मीडिया पर भी इस घटना को लेकर आक्रोश फैल गया। कुछ ही दिनों में जांच पूरी हुई और लेखपाल के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई के आदेश दिए गए

Post a Comment

0Comments

Post a Comment (0)