मोहब्बत और भाईचारे का संदेश है अलीगढ़ में आशूरा का जुलूस मुख़्तार ज़ैदी....

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सैय्यद अतीक उर रहीम (शब्द डेस्क)

अलीगढ 

हजरत इमाम हुसैन ने कर्बला के मैदान में यजीद के जुल्म के खिलाफ झुकने से इंकार कर दिया था। जब यजीद ने जंग पर आमादा हुआ तो हजरत इमाम हुसैन ने कहा कि हमारा रास्ता छोड़ दो और हमें हिंदुस्तान जाने दो। यही कारण है कि आज हिंदुस्तान में सभी धर्मों के लोग हजरत इमाम हुसैन को याद करते हैं और उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। अलीगढ़ में इस परंपरा का विशेष महत्व है, जहां मोहर्रम के जुलूस में सुन्नी और शिया उलेमा मिलकर हजरत हुसैन को याद करते हैं।

इसी  संबंध में, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के ओल्ड बॉयज़ अलुमनी एसोसिएशन अलीगढ़  ने शहर के सुन्नी और शिया उलेमा की एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की। शहर  मुफ्ती मुफ्ती मौलाना खालिद हमीद , शिया आलिम मौलाना नवेद अब्बास क़ाज़मी,  मौलाना हसन मोहम्मद, मुख्तार ज़ैदी, डॉक्टर आज़म मीर खान, नादिर नक़वी  पत्रकारों से रूबरू हुए इस मौके पर  शहर मुफ्ती आदरणीय मुफ्ती खालीद हमीद , शहर मुफ्ती अलीगढ़, ने गुफ्तगू करते हुए अपील की कि 10 मोहर्रम को निकाले जाने वाले जुलूस में मोहब्बत और अमन का पैगाम दें, शांति और संयम से हजरत हुसैन की कुर्बानी को याद करें और गैर जरूरी नारे न लगाएं और अनैतिक काम ना करें 

प्रसिद्ध शिया धर्मगुरु  मौलाना नवेद अब्बास क़ाज़मी ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि हिंदुस्तान हमेशा से ही अमन की जमीन रहा है। उन्होंने कहा कि हजरत इमाम हुसैन का मकसद था कि एकता कायम हो और हर कौम और मिल्लत में इंसानियत हो। इंसानियत, धर्म से बढ़कर है, दुनिया में पहले इंसानियत है उसके बाद ही धर्म है। यही कारण है कि सभी धर्मों के लोग हजरत इमाम हुसैन का बेइंतेहा सम्मान करते हैं और मोहर्रम के जुलूस में शिरकत करना अपनी बड़ाई समझते हैं। मौलाना हसन मोहम्मद ने कहा कि इंसानियत की हिफाजत हजरत इमाम हुसैन का सबसे बड़ा पैगाम था। कर्बला के मैदान में हजरत इमाम हुसैन अपने 72 साथियों के साथ शहीद हो गए लेकिन जालिम का साथ नहीं दिया। हजरत इमाम हुसैन की शहादत आज भी जुल्म के खिलाफ एक जंग है और मजलूम, बेबस और बेसहारों का साथ देने का सबक और हिदायत है।


अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी ओल्ड बॉयज़ अलुमनी एसोसिएशन के जनरल सेक्रेटरी डॉ. आजम मीर ने कहा कि अलीगढ़ की जमीन पहले से ही सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल पेश करती रही है। मोहर्रम के मौके पर सभी मसलकों और धर्मों के लोग मोहर्रम के जुलूस में हिस्सा लेते हैं और एक दूसरे के साथ भाईचारे और सौहार्द के संदेश को आम करने की कोशिश करते हैं। उन्होंने कहा कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की परंपरा रही है कि यहाँ शिया-सुन्नी एक मस्जिद में नमाज़ पढ़ते हैं, यही परंपरा हम लोग मोहर्रम के जुलूस में भी कायम रखते हैं।

मुख़्तार ज़ैदी ने कहा कि इस शहर की खासियत यह है कि हर कौम और मिल्लत के लोग, चाहे वे हिंदू हों या मुसलमान, सभी इसमें शरीक होते हैं और हजरत इमाम हुसैन को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। लोगों के दिलों में यह विचार चलता है कि हजरत इमाम हुसैन ने इंसानियत को बचाया और जुल्म के खिलाफ आवाज उठाई। उस वक्त हम मौजूद नहीं थे, लेकिन आज हम उन्हें याद करते हैं और उनके सबक को अपनी जिंदगी के लिए मिसाल मानते हैं।


नादिर नक़वी ने कहा कि यूं मोहर्रम के जुलूस में सभी समुदाय और धर्म के लोग किसी न किसी स्तर पर अपनी शिरकत सुनिश्चित करते हैं। यह भाईचारे की एक महान मिसाल है और इसी भाईचारे और इंसानियत का सबक हजरत इमाम हुसैन देते हैं

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