अलीगढ (शब्द डिजिटल डेस्क ): वाइस चांसलर नईमा गुलरैज़ के नेतृत्व में विश्वविद्यालय में सीरत-उन-नबी पर विभिन्न शानदार कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है
रबी-उल-अव्वल का महीना चल रहा है, जो पैगंबर मुहम्मद (स.अ.व.) की पैदाइश का महीना है। इसी सिलसिले में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) में पैगंबर की सीरत (जीवनचर्या) पर आधारित कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है। स्कूल निदेशक, प्रोफेसर असफर अली खान की अध्यक्षता में स्कूलों में सीरत के विभिन्न पहलुओं पर आधारित मुकाबले, जिसमें क़िरात (कुरान का पाठ), नात शरीफ (पैगंबर की प्रशंसा में कविता), भाषण, निबंध लेखन, और क्विज़ जैसी प्रतियोगिताएँ शामिल हैं, पूरे जोश के साथ आयोजित की तैयारी की जा रही हैं।
आज सुबह रविवार 10 बजे जवाहर लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज ऑडिटोरियम में कुरान सम्मेलन आयोजित किया गया। वहीं, कल सोमवार को सुबह 11 बजे कॅनेडी हॉल में सीरत-उन-नबी के ऊपर एक विशेष कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा। इसके साथ ही मौलाना आजाद लाइब्रेरी में दो दिन 16, 17 सितंबर को मौहम्मद साहब की जीवनी पर पुस्तकों की नोमाइश लगाई जायेगी
सीरत कार्यक्रम में मौलाना सैयद मोहम्मद ग़यासुद्दीन, बानी और नाज़िम, दारुल उलूम, मरकज़ इस्लामी, सिविल लाइन्स, इलाहाबाद और मौलाना मोहम्मद मोहसिन, प्रिंसिपल, वसीका अरबी कॉलेज, फैज़ाबाद, पैगंबर की सीरत पर अपना भाषण देंगे। इसके साथ ही, विश्वविद्यालय के छात्र नात पेश करेंगे।
ज्ञात हो कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी ने अपनी स्थापना से ही सीरत-लेखन और धार्मिक शिक्षा को कभी नजरअंदाज नहीं किया है। इस साल भी कुलपति प्रोफेसर नाईमा गुलरैज़ विश्वविद्यालय में हर साल की तरह पूरे जोश के साथ सीरत-उन-नबी कार्यक्रम के लिए प्रतिबद्ध हैं।
यह भी उल्लेखनीय है कि सर सैयद अहमद खान खुद सीरत-लेखन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे। उनके इतिहास और समाज सुधार में योगदान अत्यधिक सराहनीय हैं। उन्होंने विलियम म्योर की पैगंबर इस्लाम (स.अ.व.) पर लिखी किताब का जवाब देने के लिए अपना बहुमूल्य संपत्ति बेचकर लंदन जाकर एक किताब लिखी। सर सैयद की उपलब्धियाँ उन्हें क्रांतिकारी व्यक्तित्वों में शामिल करती हैं। सीरत-उन-नबी पर उनकी सेवाएँ उन्हें हमेशा उच्च स्थान पर रखेंगी। उन्होंने उर्दू में सबसे पहली सीरत-उन-नबी की किताब "ख़ुतबात-ए-अहमदिया" लिखी, जो इस्लाम पर किए गए सवालों का पहला व्यवस्थित जवाब है। यह किताब उन्होंने लंदन में लिखी और वहीं से प्रकाशित करवाई। प्रोफेसर अर्नोल्ड के अनुसार, यह किताब इस लिहाज से अद्वितीय है कि इसने ईसाई धर्म के गढ़, यानी यूरोप में इस्लाम पर हुए सवालों का जवाब दिया।
सर सैयद की शख्सियत कई पहलुओं वाली थी। वह एक महान शिक्षक, वकील, पुरातत्वविद, पत्रकार और समुदाय के सुधारक थे। उनकी किताब "ख़ुतबात-ए-अहमदिया" से उनकी सीरत पर की गई रिसर्च और पुराने एवं नए स्रोतों से उनकी क्षमता का अंदाजा लगाया जा सकता है। सर सैयद ने आधुनिक उर्दू गद्य की शुरुआत की और आधुनिक सीरत-लेखन की बुनियाद रखी।
पैगंबर इस्लाम (स.अ.व.) ने धार्मिक सहिष्णुता, सामंजस्य और भाईचारे की शिक्षा दी और इसे अपनी पूरी जिंदगी में अपनाया। उन्होंने मदीना चार्टर का हवाला देते हुए मदीना में अन्य कबीले और धर्मों के लोगों के साथ पैगंबर मुहम्मद (स.अ.व.) के व्यवहार का जिक्र किया और कहा कि पश्चिम में पैगंबर इस्लाम को गलत ढंग से पेश किया गया है या उन्हें गलत समझा गया है। ध्यान देने वाली बात यह है कि सर सैयद अकादमी ने सर सैयद की विद्वतापूर्ण सेवाओं, उनके सहयोगियों और अलीगढ़ के बड़े व्यक्तित्वों पर 40 मोनोग्राफ सहित कई किताबें प्रकाशित की हैं। सर सैयद की रचनाओं की श्रृंखला में "मक़ालात-ए-सैयद" प्रकाशित की गई है, जिसकी सातवीं मात्रा ख़ुतबात-ए-अहमदिया पर आधारित है।
ध्यान देने योग्य है कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के संस्थापक सर सैयद अहमद खान की प्रासंगिकता उनके समय की तुलना में आज अधिक है, क्योंकि उनका शैक्षिक जागरूकता मिशन आज पहली महिला वाइस चांसलर प्रोफेसर नईमा गुलरेज की कियादत में आज एएमयू में प्रभावी रूप से काम कर रहा है और समुदाय इससे लाभान्वित हो रहा है।