प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आधुनिक भारत का विजन गाँधी के आदर्शों का ही कार्यान्वयन है!

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गांधी से मोदी तक: आत्मनिर्भरता की यात्रा


मोदी आज के भारत में गांधी के विचारों को जीवंत कर रहे हैं


मोदी के नेतृत्व में गांधी की विरासत जीवित है


 प्रो. (डॉ.) जसीम मोहम्मद


एक राष्ट्र के रूप में भारत की प्रगति हमेशा उसके नेताओं के दर्शन और सिद्धांतों से प्रभावित रही है। आधुनिक भारत के इतिहास में अपनी कार्यशैली से राष्ट्र के मानस-पटल पर व्यापक और गहरी छाप छोड़नेवाले यदि  दो नेताओं का उल्लेख किया जाए, तो महात्मा गाँधी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम सम्म्मिलित हैं। गाँधी के विचारों ने जहाँ भारत की आजादी की लड़ाई को आकार दिया और देश के नैतिक और सामाजिक ताने-बाने की नींव रखी, वहीं मोदी ने उन आदर्शों को आगे बढ़ाया और उन्हें आधुनिक भारत की जटिल एवं तेजी से बदलती वास्तविकताओं पर लागू किया। समय और संदर्भ में पर्याप्त अंतर के बावजूद, गाँधी के दर्शन और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व के बीच संबंध स्पष्ट है। मोदी के शासन को 21वीं सदी में गाँधी के दृष्टिकोण को जीवंत रूप से प्रसारित करने के प्रयास के रूप में देखा जा सकता है।


गाँधी-दर्शन के केंद्र में स्वराज था - राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक दोनों रूप से स्वशासन का विचार। गाँधी ने आत्मनिर्भरता और व्यक्तियों एवं समुदायों को सशक्त बनाने के महत्त्व पर जोर दिया। यह दृष्टि नरेंद्र मोदी की आत्मनिर्भर भारत जैसी पहलों में परिलक्षित होती है, जो स्थानीय विनिर्माण और उद्यमशीलता को प्रोत्साहित करती है। "मेक इन इंडिया" को बढ़ावा देने और स्थानीय उद्योगों के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करके, नरेंद्र मोदी उसी लक्ष्य की दिशा में काम कर रहे हैं, जिसकी गाँधी ने कल्पना की थी: एक ऐसा भारत जो दूसरों पर निर्भर नहीं हो, बल्कि अपनी ताक़त पर खड़ा हो। ग्रामीण विकास पर गाँधी का ध्यान भारत के लिए उनके दृष्टिकोण की एक और आधारशिला थी। उनका मानना था कि भारत की आत्मा उसके गांवों में है और भारत को सच्ची आजादी तभी मिलेगी, जब ग्रामीण आबादी का समग्र उत्थान होगा। मोदी ने इस मशाल को प्रधानमंत्री आवास योजना (सभी के लिए आवास) पर्यावरण स्थिरता, जो गाँधी के सोच में गहराई से समाहित है, एक और क्षेत्र है, जहाँ मोदी की नीतियाँ गाँधीवादी विचारों के साथ निरंतरता को दर्शाती हैं। गाँधी ने प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करने और दैनिक जीवन में स्थिरता का अभ्यास करने पर जोर दिया। अक्षय ऊर्जा के लिए मोदी का जोर, विशेष रूप से अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन और कार्बन उत्सर्जन को कम करने के प्रयासों के माध्यम से, पर्यावरण की रक्षा के लिए गाँधी की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। 


इनके अतिरिक्त, नमामि गंगे कार्यक्रम, जो गंगा नदी को साफ और पुनर्जीवित करने का प्रयास करता है, भारत के प्राकृतिक संसाधनों को संरक्षित करने के गाँधी के सपने को आगे बढ़ाता है। गाँधी के सबसे बड़े योगदानों में से एक, सादगी में उनका विश्वास और यह विचार था कि वास्तविक शक्ति नैतिक अखंडता से आती है। गाँधी का जीवन विनम्रता, अनुशासन और नैतिक नेतृत्व का प्रतीक था। सादगी और अनुशासन से चिह्नित मोदी की व्यक्तिगत जीवनशैली अक्सर गाँधी के साथ तुलना करती है। मोदी ने अक्सर ख़ुद को “प्रधानसेवक” या मुख्यसेवक के रूप में संदर्भित किया है, जो लोगों की सेवा में उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है, ठीक उसी तरह जैसे गाँधी, सेवा के माध्यम से नेतृत्व पर जोर देते थे।


गाँधी की नज़र में, आत्मनिर्भरता श्रम की गरिमा के साथ-साथ चलती थी। उन्होंने लोगों को अपने काम पर गर्व करने के लिए प्रोत्साहित किया, चाहे वह चरखा चलाना हो या अपने घरों की सफ़ाई करना। ‘स्किल इंडिया’ और ‘मेक इन इंडिया’ जैसी पहलों के ज़रिए कौशल विकास पर मोदी का ध्यान इसी विश्वास से उपजा है कि हर काम का मूल्य होता है और काम को सम्मान देने से सशक्तिकरण होता है। भारत के युवाओं को कुशल और आत्मनिर्भर बनने के साधन देकर, मोदी श्रम की गरिमा को बढ़ावा देने के गाँधी के नक्शेकदम पर चल रहे हैं। सामाजिक न्याय गाँधी की विचारधारा का एक और स्तंभ था। उन्होंने शोषित और हाशिए पर पड़े लोगों, खासकर दलितों के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी और एक ऐसे समाज की कल्पना की, जहाँ सभी को समान अवसर मिले। मोदी ने बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ और आयुष्मान भारत जैसी योजनाओं के ज़रिए इस क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है, जो दुनिया का सबसे बड़ा सरकारी प्रायोजित स्वास्थ्य सेवा कार्यक्रम है। ये पहल गाँधी के समानता और सामाजिक न्याय के आदर्शों पर आधारित हैं, जो यह सुनिश्चित करते हैं कि सबसे कमज़ोर लोगों को भी सम्मानजनक जीवन जीने का अवसर मिलना चाहिए।  गाँधी की सबसे गहरी विरासतों में से एक, अहिंसा और शांति में उनका अटूट विश्वास है। गाँधी के अहिंसा के सिद्धांत ने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन और संघर्ष-समाधान के प्रति इसके दृष्टिकोण को आकार दिया। नरेंद्र मोदी के कूटनीतिक प्रयास, विशेष रूप से पड़ोसी देशों के साथ शांतिपूर्ण संबंध बनाए रखने के साथ-साथ भारत की संप्रभुता की रक्षा करने में दृढ़ रहना, शांति और व्यावहारिकता के बीच इस गाँधीवादी संतुलन को दर्शाता है। 


सांप्रदायिक सद्भाव के महत्त्व में गाँधी की गहरी आस्था मोदी के एकता और विविधता पर ध्यान केंद्रित करने में परिलक्षित होती है। गाँधी ने हमेशा इस बात पर जोर दिया कि भारत की ताकत उसके बहुलवाद में निहित है, जहाँ विभिन्न धर्मों, भाषाओं और संस्कृतियों के लोग शांतिपूर्वक सह-अस्तित्व में हैं। मोदी का "सबका साथ, सबका विकास" का नारा गाँधी के दृष्टिकोण का प्रत्यक्ष विस्तार है। अंतर-धार्मिक संवाद और समावेशी विकास को बढ़ावा देनेवाले कार्यक्रमों को विकसित करके, मोदी एक ऐसे भारत का निर्माण करना चाहते हैं, जहाँ विविधता को कम किए बिना एकता का जश्न मनाया जाए। हालाँकि जिस दुनिया में गाँधी रहते थे, वह आज से काफी अलग है, लेकिन उन्होंने जिन मूल मूल्यों की वकालत की, आत्मनिर्भरता, सामाजिक न्याय, अहिंसा और पर्यावरणीय स्थिरता इत्यादि, वे सब आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं। मोदी के नेतृत्व ने आधुनिक युग के दबाववाले मुद्दों को संबोधित करने के लिए इन कालातीत मूल्यों को अपनाया है। चाहे वह आर्थिक सुधारों, सामाजिक कार्यक्रमों या पर्यावरणीय पहलों के माध्यम से हों, मोदी का शासन गाँधी के स्थायी दर्शन को प्रतिध्वनित करता है और यह सुनिश्चित करता है कि भारत न केवल भौतिक रूप से प्रगति करे, बल्कि अपने संस्थापक नेताओं द्वारा निर्धारित नैतिक और नैतिक मानकों को भी बनाए रखे। 


भारत जैसे जटिल, आधुनिक लोकतंत्र में नेतृत्व का सार परंपरा को नवाचार के साथ, अतीत के ज्ञान को वर्तमान आवश्यकताओं के साथ संतुलित करने में निहित है। कहा जा सकता है कि गाँधी की विरासत, जिसने राष्ट्र के नैतिक और नैतिक ताने-बाने पर जोर दिया, मोदी की नीतियों और कार्यक्रमों में पुनर्जीवित हो रही है, जबकि उनके दृष्टिकोण, शैली और संदर्भ में भिन्न हैं, एक आत्मनिर्भर, सामाजिक रूप से न्यायपूर्ण और समावेशी भारत का साझा दृष्टिकोण राष्ट्र के लिए गाँधी और मोदी, दोनों के दृष्टिकोण का आधार बना हुआ है। जैसे-जैसे भारत आगे बढ़ रहा है, वह गाँधी की विरासत को अपने साथ लेकर चल रहा है, जिसे नरेंद्र मोदी के गतिशील नेतृत्व के माध्यम से आज की दुनिया की चुनौतियों और अवसरों का जवाब देनेवाले तरीक़े से लागू किया जा रहा है। मोदी को गाँधी के दर्शन के आधुनिक वास्तुकार के रूप में देखा जा सकता है, जो आज की दुनिया में उन कालातीत विचारों को अमल में ला रहे हैं, जबकि गाँधी ने आत्मनिर्भरता, सादगी और सामाजिक न्याय के अपने दृष्टिकोण के साथ नींव रखी। नरेंद्र मोदी उन सिद्धांतों को राष्ट्रीय स्तर पर लागू करके आगे बढ़ा रहे हैं। आत्मनिर्भर भारत, स्वच्छ भारत अभियान और बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से मोदी,  गाँधी के आदर्शों को व्यावहारिक समाधानों में बदल रहे हैं, जो आधुनिक भारत की जरूरतों को पूरा करते हैं। वह गाँधी की विरासत को संरक्षित कर रहे हैं और उसका विस्तार कर रहे हैं, यह सुनिश्चित करते हुए कि भारत समानता, स्थिरता और अहिंसा के अपने मूलभूत मूल्यों के प्रति निष्ठावान रहते हुए आगे बढ़े। 


कई मायनों में, नरेंद्र मोदी, गांधी, द्वारा रखी गई व्यापक नींव पर निर्माण कर रहे हैं, एक मजबूत और आत्मनिर्भर भारत को आकार दे रहे हैं, जो गाँधी के मूल्यों के ही अनुरूप है। आधुनिक भारत के  शासन के क्रम में एक कुशल वास्तुकार के रूप में, नरेंद्र मोदी ने गाँधी के दृष्टिकोण को नया कलेवर दिया है। उसे आज की चुनौतियों के संदर्भ में प्रासंगिक बनाया है, जो भारत को भविष्य में आत्मविश्वास से आगे बढ़ने में मददगार है। कहा जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आधुनिक भारत का विजन गाँधी के आदर्शों का ही कार्यान्वयन है! 


(लेखक तुलनात्मक साहित्य में प्रोफेसर हैं और नरेंद्र मोदी अध्ययन केंद्र  के अध्यक्ष हैं। 

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