अलीगढ : एएमयू CAA के विरोध से जुड़े मामलो में AMU छात्र को राहत

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 अलीगढ (शब्द मीडिया डेस्क ): AMU CAA के विरोध से जुड़े मामलो में AMU छात्र को राहत


इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एएमयू छात्र के खिलाफ चल रही कार्यवाही पर लगाई रोक — नागरिकता संशोधन कानून के विरोध से जुड़ा है मामला

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) क छात्र मिस्बाह क़ैसर को बड़ी राहत देते हुए, उनके खिलाफ चल रही फौजदारी कार्यवाही पर अंतरिम रोक लगा दी है। यह मामला वर्ष 2020 में नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के विरोध में हुए प्रदर्शन से जुड़ा हुआ है।


माननीय न्यायमूर्ति संजय कुमार पचौरी की एकल पीठ ने *मामला संख्या 7946/2021 (राज्य बनाम आकिब जावेद पाशा एवं अन्य)*, जो कि एडीशनल डिस्ट्रिक्ट एवं सेशन जज, अलीगढ़ की अदालत में विचाराधीन है, की कार्यवाही पर आगामी आदेश तक रोक लगा दी है।


यह आदेश, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), 2023 की धारा 528 के अंतर्गत दाखिल एक प्रार्थना पत्र पर सुनवाई के दौरान पारित किया गया। उक्त प्रार्थना पत्र को अधिवक्ता अली बिन सैफ और कैफ़ हसन द्वारा दायर किया गया था, जिसमें *थाना सिविल लाइंस, अलीगढ़* पर दर्ज *प्राथमिकी संख्या 96/2020* से उत्पन्न समस्त कार्यवाही को निरस्त करने की मांग की गई थी। प्राथमिकी में आईपीसी की धारा 188 और 341 के अंतर्गत आरोप लगाए गए थे।


आवेदक की ओर से अधिवक्ता अली बिन सैफ, ज़ीशान खान और कैफ़ हसन ने अदालत के समक्ष यह दलील दी कि एफआईआर पूरी तरह से झूठे और मनगढ़ंत आरोपों पर आधारित है, जो कि आवेदिका को परेशान करने के इरादे से की गई थी। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि दिनांक 22 अप्रैल 2021 को पारित तलब आदेश सीआरपीसी की धारा 195(1)(क) के अनिवार्य प्रावधानों के उल्लंघन में पारित किया गया था। साथ ही यह भी बताया गया कि आरोपी के विरुद्ध तलब करने से पूर्व कोई साक्ष्य संज्ञान हेतु प्रस्तुत नहीं किया गया था और संज्ञान आदेश एक मुद्रित प्रपत्र पर पारित किया गया, जो कि न्यायिक मंशा के अभाव को दर्शाता है।


इन तर्कों पर संज्ञान लेते हुए, न्यायालय ने माना कि मामला विचारणीय है और इस पर निर्णय लेने से पहले कार्यवाही पर रोक लगाना आवश्यक है। इसके साथ ही न्यायालय ने प्रतिवादी संख्या 2 को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, अलीगढ़ के माध्यम से नोटिस जारी कर तीन सप्ताह में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। आवेदक को उसके पश्चात एक सप्ताह में प्रत्युत्तर दाखिल करने की अनुमति दी गई है।


अब यह मामला आठ सप्ताह बाद पुनः सुनवाई हेतु सूचीबद्ध किया गया है।

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